नारायणगढ़। अंग्रेजों द्वारा भारत की संस्कृति और संस्कारों का उपहास बनाए जाने व भारत के नये संवत साल को पहली अप्रैल से बदलकर पहली जनवरी किए जाने पर एक कवि के रूप में भूपेन्द्र कपूर ‘भूप’ ने पहली अप्रैल की सत्यता बताते हुए ख़ास पंक्तियों द्वारा कुछ इस तरह अपने विचार प्रकट किए।
लो जी आ रही है पहली अप्रैल,
उन्होंने इसे अप्रैल फूल डे बना दिया,
हमने भी अज्ञानता से इसे मान लिया,
अंग्रेजो ने भारत की संस्कृति और संस्कारो का बड़ा उपहास उडाया,
1582 में जब पोप ग्रेगोरी ने,
पहली जनवरी वाला नया साल शुरू किया,
उस वर्ष भारत का नया संवत साल, बस पहली अप्रैल को ही था,
जिनको साल में दिनो और महिनो तक का ज्ञान न था,
उन्होंने चार चार बार, अपने साल के दिनो को बदला,
भारत से जान कर, साल में दस के बारह महिने किये ।
उन्होने हमारे उस नव वर्ष दिवस को, बस अप्रैल फूल डे बता दिया ,
उनके पहली जनवरी वाले नव वर्ष, पर देखो कुछ भी नया नहीं होता,
ना सर्दी घटती बिल्कुल भी, ना बदलते कपडे लोगों के,
ना पत्ते बदलते पेडों के, ना फसल पकती किसानो की,
ना क्लासें बदलती बच्चों की, ना खाते बदलते हम सबके,
पर पहली जनवरी से, कैलेन्डर उन वाला बदल जाता है,
उस साल जब पहली अप्रैल से, कैलेन्डर उनका लागू हुआ,
हमारे भारत में सब कुछ था बदला बदला,
सर्दी थी भागी यहां से, लोगों के थे कपडे बदले,
पत्ते बदले पेडों ने, पक्की फसल किसानो की,
बच्चों की बदली क्लासें, खाते बदले थे हम सबके,
सब कुछ था उस वक्त यहां बदला बदला,
फिर भी उन अंग्रेजो ने, हमें दिखाने को नीचा,
उस पहली अप्रैल से, उसे अप्रैल फूल डे बता दिया,
जो अज्ञानी खुद फूल थे, उन्होने हमें फूल बता दिया,
भूप कहे ऐ देश वासियों, अपनी संस्कृति का सम्मान करो,
पहली अप्रैल को, अप्रैल फूल डे भूल जाओ,
लगा कर आंगन में या उचित जगह, पर एक पेड पौधा,
इस दिन को मन से अप्रैल कूल डे मनाओ सब,
ताकि पर्यावरण की भी रक्षा हो, और सभी यहां स्वस्थ रहें,
आओ हम प्रण करें, पहली अप्रैल को अप्रैल कूल डे ही मनाऐंगे,
बुरी लगी हों गर ये मेरी बातें किसी को,
तो क्षमा प्रार्थी हूं मैं उन सभी से।